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सनई के फूल सेहत के मूल

सनई का फूल उन कई प्रकार के पौधों जिनके तने से प्राप्त फाइबर से रस्सियाँ बनाई जाती हैं में से एक पौधे से प्राप्त होता है। इसकी छोटी या फिर थोड़ी बड़ी कलियों को सब्जी के लिए प्रयोग किया जाता है जिससे बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी बनती है। इसकी छोटी कलियाँ आवरण से ढकी होने के कारण हरे रंग की होती हैं और बड़ी कलियों में आवरण से बाहर पीले रंग की पंखुड़ियाँ भी दिखाई देती हैं । कलियों को इस आवरण के साथ ही पकाया जाता है…

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सनई के फूल सेहत के मूल
सनई का फूल उन कई प्रकार के पौधों जिनके तने से प्राप्त फाइबर से रस्सियाँ बनाई जाती हैं में से एक पौधे से प्राप्त होता है। इसकी छोटी या फिर थोड़ी बड़ी कलियों को सब्जी के लिए प्रयोग किया जाता है जिससे बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी बनती है। इसकी छोटी कलियाँ आवरण से ढकी होने के कारण हरे रंग की होती हैं और बड़ी कलियों में आवरण से बाहर पीले रंग की पंखुड़ियाँ भी दिखाई देती हैं । कलियों को इस आवरण के साथ ही पकाया जाता है। अलग क्षेत्रों में सनई के फूल को भिन्न नामों से जाना जाता है। इसे बंगाली में शॉन (Shon), कन्नड – सनालू (Sanalu), मलयालम – वुक्का पू (Wucka poo), मराठी – ताग (Tag), तमिल – सन्नप्पू सनल (Sannappu sanal),तेलगु – जनुमू पुरुवू (janumu puruvu) कहते हैं।

सनई पोषक तत्वों की उपस्थिती की दृष्टि से:

कैल्शियम, फोस्फोरस और फाइबर सनई के फूल में प्रमुख हैं। कैल्शियम और फोस्फोरस हड्डियों और दांतों के निर्माण एवं मजबूती के लिए ज़रूरी होते हैं। ये शरीर में एंज़ाइम्स की क्रियाओं और कई चयापचयी (मेटाबॉलिक) क्रियाओं में भी महत्व रखते हैं। कैल्शियम हृदय कि धड़कन को सामान्य रखने और मांसपेशियों की सामान्य क्रियाशीलता में भी सहायक है। फाइबर मोटापा, मधुमेह और हृदय रोगों की आशंकाओं को कम करता है। फाइबर कब्ज़ और कुछ प्रकार के कैंसर से बचाव और नियंत्रण में भी सहायक है। सनई के फूल में थोड़ी मात्रा में प्रोटीन भी पाया जाता है। फेनोल और फ्लावोनोइड वर्ग के तत्व भी सनई के फूल में पाये जाते हैं । इन वर्गों के तत्वों का चिकित्सीय और औषधीय महत्व होता है।

सनई चिकित्सीय और औषधीय गुण के संदर्भ में :

पूर्व में हुए शोध के आधार पर सनई के फूल में जीवाणुरोधी गुण पाये जाते हैं। इसमें ई. कोलाई, के. निमोनी, पी. एरुजिनोसा, एस. ऑरियस, और वी. कॉलरी नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) के लिए जीवाणुरोधी गुण पाये गए हैं। ये बैक्टीरिया शरीर पर कई प्रकार के दुष्प्रभाव डालते हैं। ई. कोलाई खूनी दस्त का कारक होते हैं। ई. कोलाई के कई प्रकार गंभीर एनीमिया, किडनी फेल्योर, मूत्र नली संक्रमण और अन्य इन्फेक्शन का भी एक कारक होते हैं। के. निमोनी कई प्रकार के संक्रमण का एक कारक है। इससे मेनिंजाइटिस, निमोनिया, रक्त संक्रमण, घाव या सर्जरी वाले अंग भाग का संक्रमण होता है। यह भी पढ़ें : वॉटर लिली है लाख दुःखों की दावा पी. एरुजिनोसा सेप्टिसीमिया, मेनिंजाइटिस, निमोनिया, मेलिग्नेंट एक्सटर्नल ओटाइटिस (बाहरी कान की घातक सूजन), एंडोप्थल्माइटिस (आँखों की आंतरिक परत की सूजन), एंडोकार्डाइटिस (हृदय की अंदुरुनी परत की सूजन) का एक कारक होता है। एस. ऑरियस स्किन इन्फेक्शन, फूड प्वायज़निंग, निमोनिया, ब्लड प्वायज़निंग, टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का एक कारक है। वी. कॉलरी कॉलरा नामक बीमारी का कारक होता है। सनई के पेड़ के अन्य भागों को भी औषधीय महत्व वाला माना गया है। पारंपरिक उपयोग एवं आयुर्वेद के विश्लेषण के आधार पर उपलब्ध जानकारियों के अनुसार सामान्यता इसकी जड़, पत्ती और बीज का इलाज में इस्तेमाल होता रहा है। परंतु इन भागों का औषधीय रूप में इतेमाल के लिए चिकित्सीय सलाह और निगरानी अति आवश्यक है। सनई पर किए गये कई शोध भी इसके विभिन्न भागों में कई औषधीय गुण को बताते है।
नोट: किसी भी नए भोज्य पदार्थ को अपने भोजन में शामिल करने से पहले या भोज्य पदार्थ को नियमित भोजन (रूटीन डाइट) का हिस्सा बनाने से पहले अपने डाइटीशियन, और डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

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