सिंघाड़ा जिससे आमतौर पर सभी परिचित होंगे ही इस समय बाज़ारों में बहुतायत से उपलब्ध होता है। यह एक मौसमी फल जरूर है पर सूखे सिंघाड़े और सिंघाड़े का आटा पूरे साल दुकानों पर उपलब्ध रहता है। सिंघाड़े का उपयोग भोजन के रूप में कई प्रकार से होता है। इसे कच्चा या पकाकर दोनों तरह से खाया जाता है। नरम या अपरिपक्व (टेंडर) सिंघाड़े कच्चे खाने पर स्वादिष्ट मीठे लगते हैं।
सिंघाड़े की सब्जी बनती है जिसके लिए अर्ध-परिपक्व सिंघाड़े ज्यादा अच्छे रहते हैं क्योंकि ये बहुत कम मीठे होते हैं। परिपक्व (मेच्यौर) सिंघाड़े कड़े होते हैं इनको उबाल कर हरी चटनी के साथ भी खाया जाता है। सिंघाड़े के आटे का हलवा और बर्फी बनाई जाती है। ग्लूटेन फ्री होने की वजह से सिंघाड़े का आटा रोटी, पूड़ी, पराठे बनाने के लिए भी उन लोगों के लिए एक विकल्प है जो सिलियक डीज़ीज़ या अन्य ग्लूटेन इंटोलरेंस या एलेर्जी से पीड़ित है। सिंघाड़ा फलाहार का एक मुख्य अंग है। सिंघाड़े की हरी और लाल छिलके वाली दो किस्में पायी जाती है।
सिंघाड़े को विभिन्न क्षेत्रों में अलग नाम से जाना जाता है। इसे बंगाली में पानी फल, गुजराती – शिंगोड़ा (Shingoda), हिन्दी, मराठी – सिंघाड़ा (Shingara), मलयालम – करिंपोलम (Karimpolam), ओड़िया – पानी सिंघाड़ा (Pani singhara), तमिल – सिंघाड़ा (Singhara), तेलगु – कुब्यकम (Kubyakam) कहते हैं।
शोध और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के विश्लेषण से उपलब्ध जानकारियों के आधार पर:
सिंघाड़ा पोषक तत्वों की उपस्थिती की दृष्टि से:
यह मिनरल्स और विटामिन्स के अच्छे स्रोत के रूप में देखा जाता है। मिनेरल्स में इसमें पोटैशियम, फॉस्फोरस, आयरन, कॉपर, मैगनीज़, मैग्नीशियम, सोडियम, आयोडीन और कैल्शियम पाये जाते हैं। इसमें विटामिन सी, बी समूह के थायमीन, राइबोफ्लेविन, और नियसिन, विटामिन ई और बीटा केरोटीन भी उपस्थित होते हैं। इसमें प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट भी पाया जाता है। यह भी पढ़ें : बड़हल - बड़ी समस्याओं का आसान हल सूखे सिंघाड़े या सिंघाड़े का आटा कुछ तत्व विशेष का सघन स्रोत होता है और इसलिए संपूरक आहार के रूप में भी देखा जाता है। सिंघाड़े में फाइटोकेमिकल्स के रूप में फ्लेवेनोइड्स, फेनोल्स और सपोनिन वर्ग के तत्वों की अच्छी मात्रा में उपस्थिति प्रमुख है। इन सभी तत्वों की उपस्थिति इसे चिकित्सीय, औषधीय एवं स्वास्थ्यवर्धक गुण प्रदान करती है।सिंघाड़ा स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि में:
सिंघाड़ा जीवाणुरोधी, अल्सररोधी, एंटीओक्सीडेंट, रोग प्रतिरोधकता प्रदान करने वाला, दर्दनाशक, शोथरोधी, तंत्रिकाओं को सुरक्षा प्रदान करने वाला, कामोद्दीपक, दस्तरोधी, मूत्र बढ़ाने वाला, कैंसररोधी, भूख बढ़ाने वाला, टॉनिक है। विभिन्न रूपों में इसका उपयोग- दस्त, पेचिश, बवासीर, पित्त दोषों, गले में ख़राश, ब्रोंकाइटिस, कफ, खाँसी, नकसीर, मासिकधर्म में अत्यधिक रक्त स्राव, ल्यूकोरिया, सीने या पेट में जलन, अर्थेराइटिस, गठिया और मूत्र संबन्धित बीमारियों जैसे पेशाब का रुकना, पेशाब में जलन के इलाज में लाभकारी मना गया है। थकान, शारीरिक दुर्बलता और कमजोरी, यौनदुर्बलता में भी इसका सेवन लाभकारी माना गया है। ये वीर्य में बढ़ोतरी करने वाला, हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाने वाला, गर्भवती स्त्रियों में संभावित गर्भपात (थ्रेटेंड एबॉर्शन) के खतरों को कम करने में सहायक है। ये थायराइड के फंक्शन को सामान्य रखने, वजन बढ़ाने, त्वचा की झुर्रियों को कम करने, शरीर से विषैले तत्व बाहर निकालने और वजन बढ़ाने में भी सहायक माना गया है। सिंघाड़े के पौधे के अन्य भाग भी औषधीय महत्व वाले हैं।नोट: किसी भी नए भोज्य पदार्थ को अपने भोजन में शामिल करने से पहले या भोज्य पदार्थ को नियमित भोजन (रूटीन डाइट) का हिस्सा बनाने से पहले अपने डाइटीशियन, और डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
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