कोरोना वायरस के संक्रमण काल का ये कठिन दौर बहुत से परिवर्तन का समय है। लोग चाहे अनचाहे बदलावों से गुजर रहे हैं। इस संकट से बचाव के लिए लॉकडाउन में रह रहे हैं। सभी के लिए यह बहुत अनचाहा है पर हमारी सुरक्षा के लिए जरूरी भी है। इस परिस्थिति ने सभी कुछ बहुत प्रभावित किया है। हमारी जरूरतें प्रभावित हुई हैं। चीजों की सप्लाई में परिवर्तन करने पड़े हैं। एक तरफ बहुत सी समस्याएँ हैं। इनसे निपटने के प्रयास हो रहे हैं। दूसरी तरफ बहुत से सकारात्मक बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं। बहुत सी चीजों में सुधार नजर आ रहा है। फल और सब्जियाँ भी प्रभावित हुए हैं। इनका स्वाद खिला-खिला सा लग रहा है। इस कठिन दौर में क्या बदलाव महसूस किए जा रहे हैं इसी को बताता एक वृतांत:
सब्जी में क्या लेना है?
जो भी खाना है वो लो पर एक लौकी जरूर ले लेना; माँ एकदम से बोलीं।
लौकी!... घर के सभी सदस्य एक सुर में बोल पड़े; अभी कल ही तो बनी थी लौकी आज फिर क्यों!
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क्यों कल अच्छी नहीं लगी! नहीं अच्छी तो जरूर लगी। बहुत दिनों बाद एकदम बढ़िया स्वाद वाली लौकी बनी थी; लेकिन आज फिर! आज-कल लौकी बहुत अच्छी आ रही है। बिलकुल वैसा ही स्वाद जैसे पहले कभी आता था। या फिर वैसा ही जैसा जब हम घर में उगा पाते थे तब ताजी तोड़कर बनाने में जैसा स्वाद आता था, एकदम वैसा ही ताजी लौकी का स्वाद; लौकी की बिल्कुल वैसी ही अपनी मिठास लिए। उतनी ही अच्छी तरह से गल जाने वाली, घुल जाने वाली लौकी आ रही है आजकल। तभी तो कल सब ने खा ली।
लॉकडाउन में खिल उठा लौकी का स्वाद
बड़े दिनों बाद “जीरे की लौकी” उसी तरह पकी है जैसे पहले कभी पका करती थी। वही स्वाद उतनी ही अच्छी तरह से गली या कहें घुली हुई। इधर काफी समय से न जाने कैसी वैराइटी आ रही थी। देख कर चाहे जितनी अच्छी लाओ न वो स्वाद आता न अच्छे से गलती। लगता है प्रदूषण कम होने का असर इन पर भी पड़ा है। इसीलिए ये शायद ऐसी हैं जैसे पहले घर में लगा करती थी।लॉकडाउन में बदली फलों की रंगत
लौकी ही क्या आजकल तो सब्जियों और फल सभी की रंगत कुछ बदली हुई है। केले को ही देखो देखने में पके तो पहले भी ऐसे ही आते थे पर इस समय केले में मिठास ही कुछ अलग है। अंगूर को देखो पहले जितना भी देख के लो मीठे के साथ कुछ खट्टे भी निकल जाते थे। पर आजकल तो अंगूर इतने मीठे और कितने अच्छे आ रहे हैं की क्या कहने। लगता है पकने का पूरा समय मिल रहा है इन सब को।लॉकडाउन में अन्दर तक लाल हुआ टमाटर
टमाटर भी देख लो बीच-बीच में टमाटर ऐसे आते हैं कि पके लाल तो रहते हैं पर अंदर बीज एकदम छोटे और कच्चे से। कभी-कभी तो टमाटर लाल और अंदर बीज का भाग हरापन लिए। पता नहीं कैसे या कौन सी नई वैराइटी के होते हैं वो टमाटर समझ में नहीं आता। आजकल टमाटर देखो लाल होने के साथ अंदर बीज भी बड़े और पके हुए हैं। हमें तो यही टमाटर समझ में आते हैं। हो सकता है कहीं से ये कोई अलग-अलग वैराइटी के आते हों।मिल रही एकदम ताज़ी सब्जियाँ
वैसे आजकल सब्जियाँ तो खूब ताजी आ रही हैं। ऐसा लगता है जैसे खेत से तुरंत तोड़कर आई है। पुराने दिन याद आ रहे हैं। सब्जियों फलों में वही रंगत वही स्वाद। दाम भी बड़े वाजिब ज्यादा मोल भाव करने की जरूरत भी नहीं। लॉकडाउन की इस व्यवस्था में ये परिवर्तन तो देखने को मिल रहा है।किसानों को भी मिल रही हो वाजिब कीमत
बस भगवान करे किसान को भी उसके वाजिब दाम मिल रहे हों। सब्जी बेचने वालों की भी आमदनी ठीक ठाक हो जा रही हो... काश इस बदलाव का बहाना कुछ और होता। किसी अच्छी परिस्थिति और परिवर्तन की वजह से यह हो रहा होता। इन सब के बीच कोई दुश्वारियाँ नहीं होती। आज जब बहुत समय बाद सब्जियों और फलों में वो रंगत लौटी है तो वास्तव में इसको महसूस करने और जीने में खुशियाँ नहीं हैं सिर्फ और सिर्फ जरूरत है। काश आज समाज का हर तबका समेकित रूप में इससे जुड़ पाता, खुशियों से इसे जी पाता।मिलती रहे ऐसी सब्जियाँ
उम्मीद करते हैं कि स्थितियाँ सामान्य होते ही आगे भी इसी तरह वाजिब दाम में अच्छी सब्जियाँ मिलती रहें। जिनकी आमदनी का जरिया है ये उनकी अच्छी आमदनी होती रहे। समाज का हर एक तबका इस बदलाव को सकारात्मक रूप से जी सके। खैर ये सब बातें तो ठीक हैं पर लौकी जरूर लेनी है। अभी जीरे की लौकी बनाई है। अब “लौकी के कतरे” बनाने हैं। ऐसी लौकी से बने कतरे की गलावट और स्वाद ही अलग होगा जैसा सब पसंद करते थे। वरना इधर काफी समय से कतरे में मसाला अलग और लौकी अलग ही लगती थी पूरी गल जाने पर भी। क्या पता इसी बहाने कुछ की थालियों से हटती लौकी शायद फिर से अपनी जगह बना ले। लौकी ही क्या हर वो सब्जी थाली में वापस आ जाए जो “इसमें अब वो स्वाद नहीं आता” की वजह से थाली से गायब हुई है। यह कहते हुए माँ ने अपनी बात खत्म की। ...और मेरा मन इन बातों को समझने में लग गया।यह भी पढ़ें: चने की विविधिता और मिंजनी
लॉकडाउन ने सब्जियों और फलों की गुणवत्ता पर निश्चित ही सकारात्मक प्रभाव डाला है। शायद यह हमारी आहारीय आदतों को भी कुछ हद तक ही सही पर प्रभावित कर जाएगा।
बात करने पर पता चला कि सब्जियों की वैराइटी थोड़ी सीमित हुई है। वो चीजें जो बेमौसम हैं या जो लोकल नहीं हैं कम दिखाई पड़ रही हैं। बावजूद इसके बहुत वैराइटी उपलब्ध है। सब्जियाँ ज्यादा फ्रेश रूप में लोगों तक पहुँच रही है।
विशेष: यह अक्सर देखने को मिलता है कि कोई व्यक्ति खाने में किसी चीज को खाते आ रहा है और फिर अनमना होकर उसको खाना छोड़ देता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। एक कारण होता है कि “अब इसमें वो स्वाद ही नहीं आता या आजकल वो स्वाद नहीं आता जैसे पहले आता था”। सबसे ज्यादा परेशानी तब होती है जब बनाने वाला यह कहता है बन तो उसी विधि से रहा है जैसे पहले बनता था फिर स्वाद क्यों नहीं आ रहा। ऐसे में व्यक्ति उसे छोड़कर अन्य विकल्प पर चला जाता है और एक वैराइटी थाली से गायब हो जाती है...