Amika Chitranshi
Magazine variation 5

बहुत याद आता है अपना गाँव, गलियारा और गूलर
गूलर का नाम तो आप सभी लोग जानते होंगे। मैं नहीं जानता कि आप में से कितने लोगों को मालूम है, कि गूलर की बेहद स्वादिस्ट सब्जी भी बनती है। हमारी बेहद अपनी देसी कहावतों और किस्से-कहानियों में भी गूलर निहायत ही आत्मीयता के साथ मौजूद है। लम्बे समय के बाद किसी से मिलने पर जब यह सुनने को मिलता है कि “आप तो गूलर का फूल हो गए” तो इसमें काफी समय से न मिलने की कसक के साथ ही अपनापन भी साफ झलकता है…
धोखा खाने के लिए तरस गया हूँ
बात खान–पान की है और इलाका अवध का तो पहले एक किस्सा सुनिए। ज़माना था नवाब वाजिद अली शाह का, उन्हीं के समय में दिल्ली के बादशाह के शहजादे भी दिल्ली की झंझटों से दूर लखनऊ में शांतिपूर्वक रह रहे थे। दोनों ही दो नायाब सभ्यताओं के प्रतीक थे, जिसका दोनों को ही गुमान था। एक दिन शहजादे ने वाजिद अली शाह को दावत दी। एक से एक नायब चीज़ें खाने में परोसी गईं, उनमें से कुछ ऐसी थीं, जो देखने में कुछ लग रहीं थीं, लेकिन खाने पर कुछ और ही निकल रही थीं…

जीमीकन्द – बड़े काम का कंद
जीमीकन्द जो सूरन नाम से भी प्रचलित है जमीन के नीचे उगने वाला कंद है। इसका कंद चपटा गोल गहरे भूरे या बादामी रंग का होता है। इसकी दो प्रजातियाँ प्रचलित हैं एक के कंद छोटे और दूसरे के आकार में काफी बड़े होते हैं। कंद के अंदर का रंग दो प्रकार का होता है एक सफेद और दूसरा नारंगी-बादामी। जीमीकन्द की विभिन्न विधियों से बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी बनती है इसके अलावा इसकी टिक्की और कबाब भी प्रचलित व्यंजन हैं…

सिंघाड़ा बीमारी ही नहीं भगाता, सम्पूरक आहार भी है
सिंघाड़ा जिससे आमतौर पर सभी परिचित होंगे ही इस समय बाज़ारों में बहुतायत से उपलब्ध होता है। यह एक मौसमी फल जरूर है पर सूखे सिंघाड़े और सिंघाड़े का आटा पूरे साल दुकानों पर उपलब्ध रहता है। सिंघाड़े का उपयोग भोजन के रूप में कई प्रकार से होता है। इसे कच्चा या पकाकर दोनों तरह से खाया जाता है। नरम या अपरिपक्व (टेंडर) सिंघाड़े कच्चे खाने पर स्वादिष्ट मीठे लगते हैं…
