कुल्फा गुणों से भरपूर एक पत्तेदार सब्जी है। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.) ने अपनी बहुत उपयोगी औषधीय पौधों की सूची में शामिल किया है। वानस्पतिक आधार पर यह एक खाने योग्य जंगली पौधा है। यह गाँव से लेकर शहर तक कहीं भी बड़ी आसानी से पाया जाता है। बाग- बगीचों, मैदानों, सड़क किनारे कहीं भी उगा हुआ यह दिख जाएगा। भोजन में इस्तेमाल होने की वजह से लोग इसे बागीचों में लगाते भी हैं। यह बाज़ारों में भी उपलब्ध है।
कुल्फा की पत्तियाँ छोटी, मोटी और अंडाकार होती है। इसकी डंठल और पत्तियाँ रसीली और लसलसी होती हैं। पत्तियाँ खाने में हल्की खट्टी और नमकीन (खारी) लगती हैं। कुल्फा की पत्तियाँ हरी और डंठल लाल-भूरा रंग लिए होती है। इनके रंग और आकार में क्षेत्रों के आधार पर थोड़ा परिवर्तन देखने को मिलता है। इसके फूल अत्यंत छोटे पीले रंग के होते हैं।
प्रचलित है कुल्फा का साग
कुल्फा का साग बहुत ही प्रचलित व्यंजन है। इसे लोग दाल में डालकर, अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर बनाते हैं। मांसाहारी व्यंजनों में गोश्त के साथ भी पकाते हैं। मछली के साथ साइड डिश के रूप में भी खाते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग नाम से जाना जाता है। कुल्फा को बंगाली में बरा लोनिया (Bara loniya) और गुजराती में मोटी (Moti) कहते हैं। हिन्दी और पंजाबी में कुल्फा (Kulfa) जबकि कन्नड़ में डोड्डागूनी सोप्पू (Doddagooni soppu) कहते हैं। मलयालम में कारिए चीरा (Karie cheera), मराठी में गोल (Ghol) एवं उड़िया में पुरुनी साग (Puruni Sag) कहते हैं। तमिल में परुप्पू कीराई (Paruppu keerai) और तेलगु में पप्पू कूरा (Pappu koora) कहते हैं।कुल्फा पोषण की दृष्टि से:
विटामिन्स, मिनेरल्स और डायटरी फ़ाइबर से भरपूर होता है कुल्फा। ये एंटीओक्सीडेंट और कैरेटिनोइड्स का अच्छा स्रोत है। विटामिन और मिनेरल्स सयुंक्त रूप से शरीर के प्रतिरक्षण तंत्र की सुचारु क्रिया, ऊर्जा निर्माण, हड्डियों और दाँतों के निर्माण और मजबूती,मांसपेशियों और तंत्रिका तंत्र की सुचारु क्रियाशीलता के लिए और शरीर के द्रव संतुलन (फ्लुइड बैलेन्स ) के लिए ज़रूरी होते हैं। एंटीऑक्सीडेंट रोगों से रक्षा, रोकथाम और बचाव में सहायक होते हैं। कैरोटेनोइड्स नेत्र रोगों, कैंसर और हृदय रोगों के होने के खतरों को कम करता है।राइबोफ्लेविन, नियसिन और पाइरिडॉक्सिन का अच्छा स्रोत
कुल्फा विटामिन ए का बहुत अच्छा स्रोत है। विटामिन बी कॉम्प्लेक्स वर्ग में ये राइबोफ्लेविन, नियसिन और पाइरिडॉक्सिन का अच्छा स्रोत है। इसमें विटामिन सी भी प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटैशियम और मैगनीज़ भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। इसमें अन्य पत्तेदार सब्जियों की अपेक्षा ज्यादा ओमेगा3 फैटी ऐसिड पाया जाता है। ओमेगा3 फैटी ऐसिड हृदय धमनी रोगों और स्ट्रोक से बचाव में सहायक है। यह भी पढ़ें: थाली में हो पोए तो रोग दूर होए इसमें फ्लेवोनोइड्स और एलकेलोइड्स वर्ग के तत्व भी उपस्थित होते हैं जो इसे बहुत से रोगों से रक्षा, रोकथाम और इलाज में सक्षम बनाते हैं। कुल्फा का लसलसा गुण म्युसीलेज जो की एक घुलनशील फाइबर है की वजह से होता है। घुलनशील फाइबर हृदय रोगों ,मधुमेह, मोटापे, कब्ज और दस्त से बचाव करने वाला होता है।शोधों और आयुर्वेद के विश्लेषण से पता चलता है कि:
कुल्फा शरीर को ठंडक पहुँचाने वाला (रेफ़रिजरेंट), पेशाब को बढ़ाने वाला (डाईयूरेटिक) स्कर्वी से बचाव एवं उपचार में सक्षम, जीवाणुरोधी, ज्वरनाशक, रक्त शोधक, रेचक, मधुमेहरोधी, तंत्रिकाओं और लिवर को सुरक्षा प्रदान करने वाला, हृदय रोगों से बचाव करने वाला, किडनी फंक्शन को सामान्य रखनेवाला, घावपूरक, शोथरोधी, अल्सररोधी है।कोलेस्टेरोल को रख सकता है नियंत्रित
यह स्कर्वी, यकृत की बीमारियों जैसे लिवर डिसफंक्शन, वायरल हेपेटाइटिस और अल्कोहोलिक लिवर डिसॉर्डर के इलाज में लाभदायक है। ये कमजोर पाचन, पाइल्स, कब्ज, कोलाइटिस, दस्त, कॉर्निया की अपारदर्शिता (ओपेसिटीज़ ऑफ कॉर्निया), और चर्म रोगों के इलाज में भी लाभकारी है। ये कोलेस्टेरोल को नियंत्रित रख सकता है। ये आर्थेराइटिस होने की संभावना को कम करता है और इसके इलाज में भी उपयोगी है। इसमे रक्त में बढ़े हुये यूरिया, क्रेटिनिन, सोडियम और पोटेशियम के स्तर को कम करने का गुण भी पाया जाता है। कुल्फा का पूरा पौधा औषधीय गुणों से भरपूर होता है इसके फूल और बीज मैं भी औषधीय गुण होते हैं। कुछ विशेष स्थितियों में इसके सेवन को मना भी किया गया है।नोट: किसी भी नए भोज्य पदार्थ को अपने भोजन में शामिल करने से पहले या भोज्य पदार्थ को नियमित भोजन (रूटीन डाइट) का हिस्सा बनाने से पहले अपने डाइटीशियन, और डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
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